
दुनिया में जहाँ लोगों के बड़े – बड़े सपने होते है। उन सपनों में लोगों की बड़ी -बड़ी गाड़िया होती है। वहीं इन सपनों को पूरा करने के लिए तमाम तरह की कोशिशें की जाती है। फिर कहीं जाकर अगर सफलता मिली तो लोगों के ख्वाब पूरे होते हैं वरना सपना अधूरा ही रह जाता है। ऐसे में दिल्ली स्थित अमेरिकी एंबेसी की 4 महिला अधिकारिओं ने भी ऐसे ही कुछ सपने देखे और उनको अपनी मेहनत के बल पर पूरा भी किया। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि ये चारो डिप्लोमैट भारत आकर ऑटो चलाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं ये चारो अमेरिकी डिप्लोमैट चलाकर ऑफिस जाती हैं। खास बात ये है कि इन्होंने सरकार से मिलीं बुलेट प्रूफ गाड़ियां भी छोड़ दी हैं। बतादें कि एनएल मेसन, रुथ होल्म्बर्ग, शरीन जे किटरमैन और जेनिफर बायवाटर्स ऑटो चलाकर बहुत खुश भी है। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसे मजेदार काम बताया। ऐसे में देखा जाये तो जहां लोगों को थोड़ी सी उपलब्धि मिल जाये तो लोग सातवें आसमान पर बैठ जाते है। ऐसे में इसे एक मिसाल के रूप में भी देखा जा सकता है।
ऑटो को दिया पर्सनल टच, ब्लू टूथ डिवाइस लगवाया
आपको बता दें कि एनएल मेसन ने कभी भी क्लच वाली गाड़ियां नहीं चलाईं। बल्कि हमेशा ऑटोमैटिक कार ही चलाई है। लेकिन भारत आकर उन्होंने ऑटो चलाना सीखा। जिसे उन्होंने अपने लिए एक नया एक्सपीरिएंस बताया। उनके अनुसार जब वो पाकिस्तान में थी तब वो बड़ी और शानदार बुलेटप्रूफ गाड़ी में ही घूमती थीऔर उसी से ऑफिस जाती थी। लेकिन जब वह बाहर ऑटो देखती थी तो लगता था कि एक बार तो इसे चलाना है। इसलिए जैसे ही भारत आई और उनको ऑटो खरीदने का मौका मिला उन्होंने खरीद लिया। बतादें कि इनके साथ रूथ, शरीन और जेनिफर ने भी ऑटो खरीदे।
मेसन ने कहा, ‘मुझे मेरी मां से प्रेरणा मिली। वो हमेशा कुछ नया करती रहती थीं। उन्होंने मुझे हमेशा चांस लेना सिखाया। मेरी बेटी भी ऑटो चलाना सीख रही है। मैंने ऑटो को पर्सनलाइज किया है। इसमें ब्लूटूथ डिवाइस लगा है। इसमें टाइगर प्रिंट वाले पर्दे भी लगे हैं।’
मैक्सिकन एंबेसडर के पास भी था ऑटो
भारतवंशी अमेरिकी डिप्लोमैट शरीन जे किटरमैन के पास पिंक कलर का ऑटो है। इसके रियर-व्यू मिरर में अमेरिका और भारत के झंडे लगे हैं। उनका जन्म कर्नाटक में हुआ था। बाद में वो अमेरिका में बस गईं। उनके पास US सिटिजनशिप है।
उन्होंने कहा, ‘मुझे एक मैक्सिकन एंबेसडर मेल्बा प्रिआ से यह प्रेरणा मिली। 10 साल पहले उनके पास एक सफेद रंग का ऑटो था। उनका ड्राइवर भी था। जब मैं भारत आई तो देखा मेसन के पास ऑटो है। तभी मैंने भी एक ऑटो खरीद लिया।’
लोगों से मिलना एक तरह की डिप्लोमेसी: रुथ होल्म्बर्ग
अमेरिकी अधिकारी रुथ होल्म्बर्ग ने कहा- मुझे ऑटो चलाना बहुत पसंद है। मैं मार्केट भी इसी से जाती हूं। यहां लोगों से मिलती हूं। महिलाएं मुझे देखकर मोटिवेट भी होती हैं। मेरे लिए डिप्लोमेसी हाई लेवल पर नहीं है। डिप्लोमेसी का मतलब है लोगों से मुलाकात करना, उन्हें जानना और उनके साथ एक रिश्ता कायम करना। ये सब मैं ऑटो चलाते हुए कर सकती हूं। मैं हर दिन लोगों से मुलाकात करती हूं। ये डिप्लोमेसी के लिए जरूरी है।
नई चीजें सीखना मुश्किल नहीं है : जेनिफर बायवाटर्स
ऑटो चलाने का अपना अनुभव बताते हुए जेनिफर ने कहा, ‘मैंने लोगों की अच्छाई देखी है। कई बार लोगों को जानने के लिए आपको आउट ऑफ द बॉक्स सोचना पड़ता है। जब मैं दिल्ली आई तो मैं मेसन के साथ ऑटो में जाती थी। बाद में मैंने अपना ऑटो खरीद लिया। इसे चलाना मुश्किल था, लेकिन मैंने सीखा।
सीखना उतना मुश्किल नहीं होता पर सबसे ज्यादा मुश्किल आसपास चल रही गाड़ियों को ध्यान में रखकर ड्राइविंग करने में होती है। यहां कोई-भी कहीं से भी अचानक आ जाता है। ये कभी-कभी डरावना हो जाता है, लेकिन इसमें काफी मजा आता है।’