
उत्तराखंड के जोशीमठ (Joshimath Sinking) में लगातार हो रहे भू-धंसाव ने चिंता बढ़ा दी है। घरों पर दरारें आने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है। बता दें, लगातार धंसते जा रहे जोशीमठ को बचाने के लिए अब पूरी सरकारी मशीनरी सक्रिय है। टीम निरीक्षण कर रही है। टीम के साथ पहुंचे गढ़वाल आयुक्त सुशील कुमार ने अमर उजाला से विशेष बातचीत की। उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि स्थिति गंभीर है और तेजी से काम करने की जरूरत है।
उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मसले पर याचिका दाखिल की है. याचिका में प्रभावित लोगों को सहायता देने, उनकी संपत्ति का बीमा करवाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने नरसिंह मंदिर के अलावा आदि शंकराचार्य से जुड़ी प्राचीन जगहों के नष्ट होने का भी अंदेशा जताया है.स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि यह घटना बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण के कारण हुई है और उत्तराखंड के लोगों को तत्काल आर्थिक सहायता और मुआवजा देने का अनुरोध किया गया है. बता दें कि उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत आज जोशीमठ जाएंगे. पूर्व मुख्यमंत्री यहां प्रभावित परिवारों से मुलाकात करेंगे. एक तरफ जोशीमठ का अस्तित्व संकट में है तो दूसरी तरफ सियासत चरम पर है. खासतौर पर विरोधी दल पूरी तरह से एक्टिव हो गए हैं. हर राजनीतिक अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ पहुंचने की कोशिश कर रहा है.
पूर्व सीएम हरीश रावत के जोशीमठ पहुंचने से पहले ही कांग्रेस के कई नेता जोशीमठ में डेरा डाल चुके हैं. सोमवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अलग डेलिगेशन लेकर जाएंगे तो उनसे पहले आज आम आदमी पार्टी का एक डेलिगेशन भी जोशीमठ जाकर लोगों से मिलेगा.
जोशीमठ के डेढ़ किलोमीटर भू-धंसाव प्रभावित क्षेत्र को आपदाग्रस्त घोषित किया गया है। भू-धंसाव का अध्ययन करके आई विशेषज्ञ समिति ने सरकार के सौंपी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है। समिति ने ऐसे भवनों को गिराए जाने की सिफारिश की है, जो पूरी तरह से असुरक्षित हैं। प्रभावित परिवारों के लिए फेब्रिकेटेड घर बनाए जाएंगे।
समिति के अध्यक्ष और सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा के मुताबिक, केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) 10 जनवरी तक इसके डिजाइन देगा और वेंडर भी बताएगा। साथ वह जोशीमठ में बने भवनों का अध्ययन करेगा और वहां किस तरह के भवन बनाए जा सकते हैं, इस बारे में अपनी रिपोर्ट देगा।
समिति की प्रमुख सिफारिशें
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी को जोशीमठ में रिस रहे पानी की जांच करने का जिम्मा दिया गया है। वह पानी के मूल स्रोत का पता लगाएगा।
- जोशीमठ की वहन क्षमता का तकनीकी अध्ययन होगा। आईआईटी रुड़की इसके लिए अपनी टीम अध्ययन के लिए भेजेगा। टीम पता लगाएगी कि वास्तव में नगर की वहन क्षमता कितनी होनी चाहिए?
- वहां मिट्टी की पकड़, भूक्षरण को जानने के लिए विस्तृत भू तकनीकी जांच होगी। जरूरत पड़ने पर नींव की रेट्रोफिटिंग का भी अध्ययन होगा। यह काम आईआईटी रुड़की करेगा।
- समिति का मानना है कि जियो फिजिकल स्टडी का नेचर जानना जरूरी है, यह काम वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान को दिया जाएगा।
- वहां हो रहे भू-कंपन की रियल टाइम मानीटरिंग होगी। इसके लिए वहां सेंसर लगाए जाएंगे। हिमालय भू विज्ञान संस्थान यह काम करेगा।
- असुरक्षित भवनों से शिफ्ट किए गए प्रभावितों के लिए स्थायी शिविर तैयार होंगे। स्थायी शिविर तैयार करने का जिम्मा सीबीआरआई को दिया जाएगा।