
नई दिल्ली : दिवाली के बाद से राजधानी दिल्ली में कई शहरों से ज्यादा प्रदूषण देखने को मिल रहा है.जिससे लोगों को काफी परेशनियां होने लगी है और सांस लेने में तकलीफ .दम घुटना या फिर आंखों में जलन होना. दिल्ली वालों के नाक में दम तो तब गया जब फैक्टरी से जहरीला धुंआ और आसपास वाले राज्यों से पराली जलाने जैसे मामले सामने आए. ये मामला काफी दिनों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है जिसमें दिल्ली सरकार को काफी खरी खोटी सुनने को मिली थी. आज चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता से कहा- आप पराली जलाने पर रोक चाहते हैं. लेकिन क्या हम हर किसान को इसका आदेश दे सकते हैं? कुछ चीजें कोर्ट कर सकता है और कुछ नहीं. हम नहीं समझते कि इस मामले को तुरंत सुनने की जरूरत है।
दिल्ली-एनसीआर में भयंकर वायु प्रदूषण
4 नवंबर को वकील शशांक शेखर झा ने दिल्ली-एनसीआर में भयंकर वायु प्रदूषण का मामला तत्कालीन चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित के सामने रखा था. उन्होंने कोर्ट को बताया था कि AQI 500 के स्तर पर पहुंच गया है. लोगों के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए कोर्ट को दखल देना चाहिए. इस पर चीफ जस्टिस ललित ने 10 नवंबर को मामला सुनवाई के लिए लगाने की बात कही थी.आज मामला सुनवाई के लिए न लगने पर वकील शशांक शेखर झा मौजूदा चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के पास पहुंचे. उन्होंने आग्रह किया कि मामले को जल्द सुना जाए. लेकिन कोर्ट ने इससे मना कर दिया. दरअसल, इस याचिका में पराली जलाने की घटनाओं का जिक्र विशेष रूप से किया गया है।
पंजाब सरकार बुरी तरह विफल
याचिकाकर्ता ने बताया है कि इस मामले में पंजाब सरकार बुरी तरह विफल रही है. हरियाणा समेत बाकी राज्यों में भी पराली जल रही है, लेकिन कुछ कमी आई है. याचिका में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को कोर्ट में तलब कर उनसे जवाब मांगने का अनुरोध किया गया है.याचिका में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRAI) की तरफ से जारी आंकड़े की जानकारी दी गई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक 1 नवंबर को फसल अवशेष (पराली) जलाने की 2,109 घटनाएं हुईं. इनमें से अकेले पंजाब के 1,842 मामले हैं. हरियाणा में 88, उत्तर प्रदेश में 9 और दिल्ली में पराली जलाने की 1 घटना हुई।
पिछले साल की तुलना में 21 प्रतिशत बढ़ोतरी
याचिका में यह भी बताया गया है कि 15 सितंबर से 31 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के मामलों में पंजाब में पिछले साल की तुलना में 21 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. बाकी राज्यों में पिछले साल की तुलना में इस साल ऐसे मामलों में गिरावट आई है.याचिकाकर्ता ने कहा है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के तरफ से जारी निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है. लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है. सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एक अध्ययन के मुताबिक हर साल दिल्ली में होने वाला यह प्रदूषण यहां रहने वाले लोगों के जीवन को 10 साल तक घटा रहा है