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वारिस पंजाब दे संगठन के प्रमुख ,खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह पर NSA ,देश के लिए खतरा तो 80 हजार पुलिसकर्मी के होते पकड़ा क्यों नहीं-HC

वारिस पंजाब दे संगठन का प्रमुख और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह पर NSA की कार्यवाही कर दी गई है.अब अमृतपाल की NRI पत्नी किरणदीप कौर और परिवार के बैंक खातों, मूवमेंट और संबंधों की जांच की जा रही है. जांच के लिए अमृतपाल के 500 करीबियों की लिस्ट भी तैयार की गई है.पंजाब के CM भगवंत मान ने पहली बार इस मुद्दे पर बयान दिया। उन्होंने कहा- पंजाब की शांति से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। आम आदमी पार्टी कट्टर देशभक्त पार्टी है.अमृतपाल सिंह को पुलिस पिछले चार दिन से तलाश रही है. अमृतपाल कहां है, अभी इसकी जानकारी किसी को नहीं है. हालांकि, पिता का आरोप है कि पुलिस फंसा रही है और उसे हिरासत में रखा है. पुलिस का कहना है कि अमृतपाल सिख देश बनाना चाहता था

आज क्या हुआ

– अमृतपाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया गया है

– तरनतारन, फिरोजपुर, मोगा, संगरूर, अमृतसर पर इंटरनेट और SMS सेवा 23 मार्च दोपहर 12 बजे तक बंद रहेगी .

– सरकार ने 72 घंटे बाद आधे पंजाब में दोपहर 12 बजे के बाद इंटरनेट शुरू कर दिया है

– हाईकोर्ट में पंजाब के AG ने कहा कि अमृतपाल पर NSA लगाया गया है

-सिख अलगाववादी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस ने अमृतपाल सिंह के समर्थन में  दिल्ली के बवाना स्थित प्रगति तीन पावर प्लांट पर हमले की धमकी दी 

-हाईकोर्ट के पंजाब सरकार से अमृतपाल पर 2 सवाल

-देश के लिए खतरा तो पकड़ा क्यों नहीं ?

-80 हजार पुलिसकर्मी क्या कर रहे थे ?

खुफिया एजेंसियों का खुलासा अमृतपाल ने ISI से जॉर्जिया में हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली 

अमृतपाल के समर्थकों को दूसरे राज्यों की जेलों में शिफ्ट किया जा रहा है 

-पुलिस ने कहा कि अमृतपाल सिख देश बनाना चाहता था 

पुलिस ने NIA को करीबियों की लिस्ट सौंपी 

6 फाइनेंस कंपनियों से करोड़ों के ट्रांजैक्शन का खुलासा 

– पुलिस का खुलासा AKF के गठन के लिए अमृतपाल ने 33 बुलेटप्रूफ जैकेट खरीदी 

-भारत की खुफिया एजेंसियों की इनपुट के अनुसार पंजाब में हेट-स्पीच को बढ़ावा देने के लिए विदेशों से खोले ट्विटर   अकाउंट 

-ऑपरेशन अमृतपाल पर पहली बार बोले CM मान बिना नाम लिए कहा  दूसरों को सिर देने की बात करता था, शांति से खिलवाड़ नहीं होने देंगे

अमृतपाल के परिवार के सदस्य भी रडार पर:NRI पत्नी की भी पुलिस-खुफिया एजेंसियों ने जांच की शुरू; खंगाले जा रहे खाते

– मोहाली में अमृतपाल समर्थकों पर एक्शन: प्रदर्शनकारियों का टेंट उखाड़ा गया; एयरपोर्ट रोड पर ट्रैफिक शुरू; भारी पुलिस बल तैनात

जानिए क्यों शुरू हुआ खालिस्तानी आंदोलन?

पंजाब में एक बार फिर अशांति का माहौल है। खालिस्तान आंदोलन के पीछे कुख्यात खालिस्तानी नेता अमृतपाल सिंह को पुलिस ने अभी तक गिरफ्तार नहीं किया। वहीं इस मामले को लेकर पंजाब हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अब अमृतपाल सिंह पुलिस की गिरफ्त से बाहर क्यों? पंजाब सरकार ने क्षेत्र में अशांति फैलने की आशंका के चलते इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। पिछले कुछ सालों में ही खालिस्तानी आंदोलन को नई हवा मिल गई है। 

भारत ही नहीं भारत के बाहर भी। आंदोलनकारी ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों के हिंदू मंदिरों में भारत विरोधी नारे लिखते देखे गए हैं। जो 2023 में एक नए स्तर पर पहुंच गया। अमृतपाल को ‘भिंडरावाले 2.0’ कहा जा रहा है। जो जर्नल सिंह भिंडरावाले और ऑपरेशन ब्लू स्टार की यादें ताजा कर देता है। खालिस्तानी आंदोलन का जन्म हालांकि इससे भी पहले का है। सवाल यह है कि यह जहरीला पेड़ कई दशकों से बार-बार सिर क्यों उठा रहा है? इस अलगाववादी आंदोलन को पूरी तरह से क्यों नहीं दबाया जा रहा है? इस पर विचार करने के लिए खालिस्तानी आंदोलन के इतिहास पर नजर डालना जरूरी है। 

आखिर खालिस्तानी चाहते क्या हैं ? 

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर खालिस्तानी चाहते क्या हैं। उनका आंदोलन वास्तव में एक अलगाववादी आंदोलन है। वे सिखों के लिए अलग राज्य चाहते हैं। जिसमें भारत का पंजाब और पाकिस्तान का पंजाब शामिल होगा। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के कुछ हिस्से भी होंगे। हालाँकि, पंजाब को छोड़कर इन राज्यों के कुछ हिस्सों पर पहली बार 1980 के दशक में दावा किया गया था 

अगर हमें इस आंदोलन के स्रोत का पता लगाना है तो हमें विभाजन के समय में वापस जाना होगा। असल में समस्या तब पैदा हुई जब हमारे बंगाल की तरह पंजाब को भी दो हिस्सों में बांट दिया गया। पाकिस्तान की आबादी का केवल 2 प्रतिशत सिख है। दूसरी ओर भारत में सिखों की एक बड़ी संख्या है। लेकिन महाराजा रणजीत सिंह के सिख साम्राज्य की राजधानी लाहौर पाकिस्तान में ही रही। ननखाना साहिब – गुरु नानक का जन्म स्थान है। शिरोमणि अकाली दल आजादी के बाद से ही अलग सिख राज्य की मांग कर रहा है। सूबा आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। 1955 में राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट ने उस दावे को खारिज कर दिया। लेकिन आंदोलन नहीं थमा

पंजाब विभाजन  

1966 में, पंजाब पुनर्गठन अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया था। परिणामस्वरूप, पंजाब को पंजाब और हरियाणा में विभाजित किया गया। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के कुछ हिस्सों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया। इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब के गठन को स्वीकार कर लिया लेकिन चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में स्वीकार नहीं किया। वह इसे स्वायत्तता देने के लिए भी सहमत नहीं थे। दूसरी ओर, 1971 में लोकसभा चुनाव के बाद 1967 और 1969 में कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के बावजूद अकाली दल की ताकत कम होने लगी। ऐसी स्थिति में उन्होंने 1973 में नई एकतरफा मांग को लेकर आन्दोलन प्रारम्भ किया। आनंदपुर साहिब प्रतिज्ञा के रूप में जानी जाने वाली मांगों में हिंदू धर्म से अलग धर्म के रूप में सिख धर्म की मान्यता, पंजाब की राजधानी के रूप में चंडीगढ़ की वापसी और पंजाब की स्वशासन जैसे मुद्दे शामिल थे। लेकिन अकाली दल की वे सभी मांगें 1982 तक ज्यादा नहीं चल सकीं। यह वह वर्ष था जब जर्नल सिंह भिंडरावाले का नाम पूरे देश में फैलने लगा। भिंडरावाले ने अकाली दल से हाथ मिला लिया। धार्मिक युद्ध मोर्चा बनाया। आंदोलन में हजारों लोग शामिल हुए 

भिंडरावाल की मृत्यु के बाद यह सोचा गया था कि पंजाब शांत हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पूरे राज्य में अशांति जारी रही। जो लगभग नब्बे के दशक के मध्य तक चला। सुनने में आया है कि पाकिस्तान इस आंदोलन को नियमित रूप से धन और अन्य सहायता प्रदान करता रहा है। लेकिन अधिकांश लोगों के प्रतिरोध के कारण आंदोलन की आग धीरे-धीरे बुझ गई।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और भिंडरावाले, दोनों कांग्रेस की गलत नीतियों का नतीजा थे

जब पंजाब में अकाली दल कांग्रेस का विकल्प बनकर उभर चुका था. इंदिरा गांधी ने इसके जवाब के तौर पर सरदार ज्ञानी जैल सिंह को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर खड़ा किया. जैल सिंह का बस एक ही मकसद था-शिरोमणि अकाली दल का सिखों की राजनीति में वर्चस्व कम करनामाना जाता है कि तेज़ तर्रार भिंडरावाले को आगे बढ़ाने में  ज्ञानी जैल सिंह और अन्य कांग्रेसियों का हाथ था. अकालियों की काट के लिए जैल सिंह और दरबारा सिंह ने उसे आगे बढ़ाया और बाद में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उसकी पीठ पर हाथ रख कर उसे पंजाब का ‘अघोषित मुखिया’ बना दिया. वरिष्ट पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब ‘बियोंड द लाइंस एन ऑटोबायोग्राफी’ में भी इसका जिक्र किया है. इसके मुताबिक संजय गांधी को लगता था कि अकाली दल के तत्कालीन मुखिया संत हरचरण सिंह लोंगोवाल की काट के रूप में एक और संत को खड़ा किया जा सकता है. यह संत उन्हें दमदमी टकसाल (सिखों की एक प्रभावशाली संस्था) के संत भिंडरावाले के रूप में मिला. नैयर के मुताबिक कांग्रेस नेता कमलनाथ ने यह माना था कि वे जरनैल सिंह भिंडरावाले को पैसे देते थे. हालांकि, उन्हें यह अंदाज़ा नहीं था कि भिंडरावाले आतंकवाद का रास्ता चुन लेगा.

कहते हैं कि जरनैल सिंह सात साल का था जब उसके पिता ने उसे दमदमी टकसाल को सौंप दिया था. यहीं उसकी आरंभिक शिक्षा हुई थी. धीरे-धीरे उसकी चर्चा बढ़ती गई. जरनैल सिंह भिंडरावाले ने सिखों से गुरु गोविंद सिंह के बताए हुए मार्ग पर लौटने का आह्वान किया. उसने सिखों से शराब, धूम्रपान जैसी लतों को छोड़ने की अपील की. उसकी लोकप्रियता तब बहुत तेज़ी से बढ़ी जब उसने हिंदुओं के ख़िलाफ़ बोलना शुरू कर दिया. भिंडरावाले अपने भाषणों में हिंदुओं को ‘टोपीवाले’, धोती वाले’ जैसे नामों से पुकाराता. वह इंदिरा गांधी को ‘पंडितां दी धी’ यानी पंडितों की बेटी कहकर बुलाता. 1977 में उसे दमदमी टकसाल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

भिंडरावाले के उभार के साथ पंजाब का माहौल तपने लगा था. इस बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए. इसके विरोध में आयोजित रोष दिवस में जरनैल सिंह भिंडरावाले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. हिंसा लगातार फैलती गई. सितंबर 1981 में पंजाब केसरी अखबार निकालने वाले हिंद समाचार समूह के मुखिया लाला जगत नारायण सिंह की हत्या हो गई. आरोप भिंडरावाले पर लगे. लेकिन उसकी लोकप्रियता इतनी ज़्यादा थी कि इन हत्याओं में उसकी नामज़दगी के बावजूद पंजाब पुलिस उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पायी. उसने खुद अपने गिरफ्तार होने का दिन और समय निश्चित किया था. उस वक़्त जैल सिंह केंद्र में गृह मंत्री थे. भिंडरावाले को गिरफ्तार करके सर्किट हाउस में रखा गया था. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई.

तब तक भिंडरावाले ने हिंदुओं के प्रति अपनी नफरत का खुला इज़हार करना शुरू कर दिया था. अपनी किताब माइ ब्लीडिंग पंजाब में खुशवंत सिंह लिखते हैं कि गायों के सर काट कर मंदिरों के सामने फेंके जाने लगे. हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों का अपमान किया गया. पर किसी की हिम्मत नहीं थी कि जरनैल सिंह भिंडरावाले को रोक सके. हिंदुओं ने भी प्रतिकार करना शुरू किया. वे गुरु ग्रंथ साहिब को जलाकर और सिगरेटों के जले हुए टुकड़े गुरुद्वारों में फेंकने लगे. जब बात बढ़ने लगी तो कभी भिंडरावाले को बढ़ावा देने वाले जैल सिंह और दरबारा सिंह ने उससे किनारा करना शुरू कर दिया था.

आतंकी घटनाओं का सिलसिला  

 

जुलाई और अगस्त 1982 में दो बार इंडियन एयरलाइंस के जहाज को हाइजैक कर लाहौर ले जाया गया था. दो बार दरबारा सिंह की हत्या के भी प्रयास किये गए. 25 अप्रैल 1983 को जालंधर के डीआईजी एएस अटवाल की स्वर्णमंदिर की सीढ़ियों पर गोली मारकर हत्या कर दी गई. उसी साल पांच अक्टूबर को आतंकियों ने अमृतसर से दिल्ली जाने वाली एक बस का अपहरण कर लिया और उसमें बैठे छह हिंदुओं को गोलियों से भून दिया.

हवा से लेकर सड़क तक और सड़क से लेकर रेल की पटरियों तक उखाड़े जाने की घटनाएं होने लगी थीं. जब तक सरकारी तंत्र उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करता, भिंडरावाले दिसंबर 1983 को स्वर्ण मंदिर के अकाल तख़्त की सुरक्षा में रहने लगा. हरदम 200 हथियारबंद लोग उसे घेरे रहते. वह समझ चुका था कि अब संघर्ष का दूसरा चरण आ चुका है. उसने स्वर्ण मंदिर में हथियार और गोला-बारूद जमा करने शुरू कर दिए थे. पंजाब में आतंकवाद चरम पर पहुंच चुका था.

आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव और इंदिरा गांधी की विफल कूटनीति

तेज़ी से बदलते हालात में अकालियों और भिंडरावाले ने हाथ मिला लिए और वे एक साथ सरकार के ख़िलाफ़ खड़े हुए थे. 1982 में हरचरण सिंह लोंगोवाल ने ‘धर्म युद्ध’ मोर्चा की स्थापना की जिसकी मुख्य मांग आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को मनवाना थी.

इस प्रस्ताव की कुछ मांगें तो देश के संघीय ढांचे को तोड़ने वाली थीं. दूसरा, पंजाब को इसमें ज़्यादा अधिकार देने की मांग थी. हालांकि इसमें फौरी तौर पर खालिस्तान की मांग नहीं की गयी थी. हरमिंदर कौर अपनी किताब ‘1984, लेसन फ्रॉम हिस्ट्री’ में लिखती हैं, ‘खालिस्तान की मांग पर भिंडरावाले की स्थिति कुछ साफ़ नहीं थी. पंजाब में असंतुलन बिगड़ चुका था और अब एक ही रास्ता रह गया था- सरकार और भिंडरावाले के बीच टकराव जो अब बस कुछ ही समय की बात थी.

ऑपरेशन ब्लू स्टार

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की ज़्यादातर मांगें इंदिरा सरकार ने नामंजूर कर दी थीं और जो मानी थीं उन पर अमल नहीं किया था. टकराव बढ़ता ही जा रहा था. बकौल हरमिंदर कौर ‘सरकार और असंतुष्टों के बीच 1984 में छह बार मीटिंग हुई और आख़िरी मीटिंग मई, 26, 1984 को हुई . ये भी बेनतीजा रही. न इंदिरा गांधी मानने को राज़ी थीं और न ही भिंडरावाले गुट के लोग. 

भिंडारवाले ने अब तेज़ी से स्वर्ण मंदिर को एक किले में तब्दील कर दिया. उसका साथ देने वालों में फौज के पूर्व मेजर-जनरल शुबेग सिंह और सिख फेडरेशन ऑफ़ इंडिया का मुखिया अमरीक सिंह भी था.’ कौर आगे लिखती हैं ‘बीबीसी ने संत लोंगोवाल से इंटरव्यू में पूछा कि क्या स्वर्ण मंदिर की किलेबंदी की जा रही है तो उन्होंने न में जवाब दिया.’

रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, ‘शुबेग की निगरानी में मंदिर की दीवारों पर रेत के बोरे रखे गए थे और प्लान बनाया गया कि संघर्ष को तब तक जिंदा रखा जाएगा जब तक आम पंजाबी विद्रोह न कर दे. दूसरी तरफ भारतीय फौज के तत्कालीन मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार को आंतकवादियों के ख़िलाफ़ कमान सौंपी गयी.’

उस समय भारतीय फौज के मुखिया अरुण श्रीधर वैद्य थे. बरार को समझाया गया था कि पंजाब में आम जनता का विद्रोह हो सकता है इसलिए 48 घंटों के भीतर स्वर्ण मंदिर को नुकसान पहुंचाये बिना उसे आतंकियों से खाली करवाना है. जनरल शुबेग और जनरल बरार एक साथ 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़े थे. वक्त का फेर देखिये, इस बार दोनों आमने-सामने थे.

दो जून, 1984 को इंदिरा गांधी ने आल इंडिया रेडियो से देश को संबोधित करके देश को पंजाब के हालात से वाकिफ कराया और आतंकवादियों से हथियार छोड़ देने की अपील की. तीन जून को सेना ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ शुरू कर दिया. सबसे पहले राज्य की टेलीफोन और बिजली व्यवस्था काट दी गयी. फिर मंदिर की घेराबंदी करके फायरिंग शुरू कर दी गई. उस दिन गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवस भी था और इस वजह से मंदिर के अहाते में काफी लोग थे. सेना खुलकर फायरिंग नहीं कर सकती थी. आतंकियों ने मौका देखकर लोगों को ढाल बना लिया. उन्होंने लोगों को मंदिर से बाहर नहीं निकलने दिया गया. सेना की मुश्किल बढ़ गयी थी. जैसे तैसे करके लोगों को बाहर निकला गया और पांच जून की रात को सेना ने अंतिम और निर्णायक हमला बोल दिया.

सेना को सख्त आदेश था कि ‘अकाल तख़्त’ पर गोलीबारी नहीं की जायेगी. कुलदीप सिंह बरार अपनी किताब ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ में लिखते हैं, ‘सबसे ज़्यादा गोलीबारी अकाल तख़्त की तरफ से ही हो रही थी और हम उधर फायर नहीं कर सकते थे.’ फौजी और आतंकी तड़ातड़ गिर रहे थे. रात के दो बज गए थे और काम अभी आधा भी नहीं हुआ था. समय निकला जा रहा था. बरार ने आतंकियों की ताक़त का गलत अंदाज़ा लगा लिया था.

रामचंद्र गुहा लिखते हैं, ‘बरार ने दिल्ली फ़ोन करके टैंकों से हमले की इजाज़त मांगी जो तुरंत ही मंज़ूर हो गयी. उसके बाद फौज के ‘विजेता टैंकों’ ने मंदिर की बाहरी दीवार तोड़कर ताबड़तोड़ बमबारी की जिससे आतंकियों को काफी नुकसान हुआ. इस अंतिम हमले में शुबेग सिंह, अमरीक सिंह और भिंडरावाले मारे गए. ऑपरेशन ब्लू स्टार को कुछ दिनों बाद रोक दिया गया. इस ऑपरेशन में लगभग 200 आतंकी मारे गए. फौज के 79 जवानों की भी जान गई जिनमें चार अफसर थे.

बाद में क्या हुआ ?

उसी साल 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी हत्या हो गयी. इसके बाद दिल्ली और पूरे देश में सिख विरोधी दंगे भड़क गए. अगले ही साल जनरल वैद्य की पुणे में हत्या हो गई. इंग्लैंड में कुलदीप सिंह बरार का गला रेतकर उन्हें मारने की कोशिश हुई. पंजाब में आतंकवाद की आग और भड़क गयी. 

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव, राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता

1985 में संत लोंगोवाल की हत्या कर दी गयी. अंततः पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस की अगुवाई में आतंक की इस आग पर काबू पाया गया.  

ऑपरेशन ब्लू स्टार पहला हादसा था जिसमें सेना ने अपने ही देश के लोगों के ख़िलाफ़ अभियान छेड़ा था. कुछ साल पहले मनमोहन सिंह की सरकार में गृह मंत्री चिदंबरम ने नक्सली समस्या से निपटने के लिए फौजी कार्रवाई की पेशकश की थी. इसे तत्कालीन जनरल वीके सिंह ने यह कहकर नकार दिया था, ‘फौज़ अपने लोगों के ख़िलाफ़ नहीं लड़ती. एक बार गलती कर चुके हैं, अब नहीं होगी.’

लंबे समय तक पंजाब शांतिपूर्ण रहा। हालांकि देश के अन्य हिस्सों में जहां सिख बड़ी संख्या में थे, खालिस्तानी आंदोलन की आग अभी भी जल रही थी। भारत ने 2020 में अमेरिकी संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ को आतंकवादी समूह घोषित किया था। यह आंदोलन पिछले तीन साल से जोर पकड़ रहा है। नए सिरे से सुनने में आया कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी शामिल हैं!

ऐसे में खालिस्तानी संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ का नाम सुनने को मिल रहा है. दिवंगत राजनेता दीप सिद्धू द्वारा बनाया गया। उनकी मृत्यु के बाद संगठन की जिम्मेदारी अमृतपाल पर आ गई। पिछले कुछ हफ्तों से खालिस्तानी आंदोलन ने फिर से सिर उठा लिया है। ऐसे में अमृतपाल की गिरफ्तारी से फिलहाल शांति आएगी? या आंदोलन नया मोड़ लेगा? इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में है। 

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