
राजनीति में कबीर के नाम से मशहूर शरद यादव का राजनीतिक करियर तो छात्र जीवन से ही शुरु हो गया था। बता दें शरद यादव इंदिरा गांधी को सबसे संवेदनशील पीएम मानते थे। वैसे तो वह इटावा के ही रहने वाले थे,लेकिन इनका राजनीतिक करियर देख कर यह कोई कह नहीं सकता। शरद यादव, विपक्षी एकजुटता के महारथी माने जाते थे। वहीं अगर इनकी राजनीतिक सफर की तरफ ध्यान दे तो इन्होनें अपनी सक्रिय राजनीति साल 1974 में पहली बार जबलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर की थी। यह सीट हिंदी सेवी सेठ गोविंददास के निधन से खाली हुई थी।
शरद यादव कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद दास को हराकर चर्चा में आए थे
शरद यादव का नाम राष्ट्रीय स्तर पर तब चर्चा में आया जब 1974 में जबलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव में उन्होंने विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के दिग्गज नेता गोविंद दास को चुनाव हराया। इसके पहले वह जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में देश के छात्र एवं युवा आंदोलन का एक बड़ा और अगुआ चेहरा बन चुके थे। मैंने भी उनका नाम तब सुना था और उनके जुझारुपन व बेबाक भाषण शैली से प्रभावित भी हुआ था। क्योंकि छात्र जीवन में मेरा वैचारिक झुकाव समाजवादी विचारधारा के प्रति था इसलिए शरद यादव हम सबके स्वाभाविक नेता थे। जब 1984 में वह अमेठी लोकसभा सीट से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े तब मेरे जैसे अनेक युवाओं को उनके राजनीतिक साहस पर रश्क हुआ।
ये समय जेपी आंदोलन का था। जेपी ने उन्हें हल्दर किसान के रूप में जबलपुर से अपना पहला उम्मीदवार बनाया था। शरद इस सीट को जीतने में कामयाब रहे और पहली बार संसद भवन पहुंचे। इसके बाद साल 1977 में भी वे इसी सीट से सांसद चुने गए। उन्हें युवा जनता दल का अध्यक्ष भी बनाया गया। इसके बाद वे साल 1986 में राज्यसभा के लिए चुने गए।
वे देश के संभवत: पहले ऐसे नेता हैं, जो तीन राज्यों से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। बिहार के मधेपुरा से 4 बार, मध्यप्रदेश के जबलपुर से 2 बार और उत्तर प्रदेश के बदायूं से 1 बार सांसद चुनेगये। राज्यसभा जाने के तीन साल बाद 1989 में उन्होंने उत्तरप्रेदश की बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। यादव 1989-90 तक केंद्रीय मंत्री रहे। उन्हें टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था।