कहानी कांग्रेस के हनुमान डीके शिवकुमार की जिन्होंने कई बार निभाई संकट मोचक की भूमिका

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23 की उम्र में देवगौड़ा को चुनौती
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27 साल में बने मंत्री
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पार्टी जब मुश्किल में पड़ी, बचा ले गए
FM NEWS : डीके शिवकुमार की कहानी शुरू होती है साल 1985 में दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव थे चार बार के MLA और दो बार विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे एचडी देवगौड़ा साथनूर सीट से चुनाव लड़ रहे थे . अचानक पिक्चर में कांग्रेस की तरफ से 23 साल का नौजवान आता है ,राजनीति में कोई अनुभव न होने के बावजूद उस लड़के ने देवगौड़ा को कड़ी टक्कर देता है .पर 15 हजार वोट से चुनाव हार जाता है लेकिन इस हार से भी वो लड़का पार्टी के बड़े नेताओं के करीब आ जाता है . डीके शिवकुमार नाम का ये लड़का अब कांग्रेस का संकटमोचक और ‘मैन ऑफ द कर्नाटक’ है.हालांकि, अभी ये तय होना बाकी है कि कांग्रेस कर्नाटक को किसके हाथ में सौंपती है लेकिन अब डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे हैं . पहला चुनाव हारने वाले डीके शिवकुमार की कांग्रेस की जीत का शिल्पकार बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है .
इसे समझने के लिए 80 के दशक यानी इंदिरा गांधी के दौर में चलना होगा
साल 1979 कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री देवराज उर्स और इंदिरा गांधी के बीच मतभेद जगजाहिर थे बात इतनी बिगड़ गई कि देवराज पार्टी से अलग हो गए इसके बाद कर्नाटक यंग कांग्रेस का ज्यादातर कैडर देवराज के साथ चला गया उस वक्त डीके कॉलेज में पढ़ रहे थे और यूथ कांग्रेस के मेंबर थे ,यूनियन को टूटता देख, कांग्रेस ने डीके शिवकुमार को लोकल यूनिट डेवलप करने की कमान सौंप दी , डीके स्टूडेंट यूनियन के सेक्रेटरी बन गए ,यहीं से डीके शिवकुमार के बड़े नेताओं के करीब आ गए . 6 साल बाद ही 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने देवगौड़ा के सामने डीके शिवकुमार को उतार दिया . और यहीं से डीके और देवेगौड़ा के बीच सियासी रंजिश की शुरुआत हुई .
इस चुनाव में एचडी देवेगौड़ा ने दो सीटों होलानरसीपुर और बेंगलुरु के साथनूर सीट से नॉमिनेशन फाइल किया था। वे वोक्कालिगा समुदाय के बड़े नेता थे, इसलिए दोनों सीटों से जीत गए . बाद में देवगौड़ा ने साथनूर सीट छोड़ दी . यहां उपचुनाव हुए तो डीके शिवकुमार फिर मैदान में उतरे और जीत गए . डीके के असली सियासी करियर की शुरुआत यही मानी जाती है
सबसे कम उम्र के मंत्री
1989 में डीके शिवकुमार साथनूर से चुनाव जीतने के बाद एस. बंगारप्पा की सरकार में 27 साल की उम्र में मंत्री बने . वे तब सबसे कम उम्र के मंत्री थे . डीके शिवकुमार और देवगौड़ा परिवार के बीच दूसरा सीधा मुकाबला साल 1999 के विधानसभा चुनाव में हुआ जब उन्होंने पूर्व PM देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी को साथनूर से हरा दिया .
डीके शिवकुमार की संकट मोचन भूमिका की कहानी
- हमेशा 40 हजार से ज्यादा मार्जिन से डीके शिवकुमार लगातार 4 बार 1989, 1994, 1999 और 2004 में साथनूर से चुनाव जीते
- 2008 से कनकपुरा से चुनाव लड़ रहे डीके अब तक कभी नहीं हारे
- 1990 में कांग्रेस ने डीके को टिकट नहीं दिया
- निर्दलीय चुनाव लड़ वर्चस्व कायम रखा इस बार भी उनके सामने एचडी देवगौड़ा थे, पर शिवकुमार ने उन्हें हरा दिया
- इस जीत ने साबित किया कि कर्नाटक में एक कद्दावर नेता का उदय हो गया है
- साल 2004 में सियासी रणनीति में माहिर होने का पहला सबूत दिया
- लोकसभा चुनाव थे, डीके ने कनकपुरा लोकसभा सीट से बिना अनुभव वाली कांग्रेसी नेता तेजस्विनी गौड़ा को टिकट दिलवा दिया
- टिकट नामांकन की आखिरी तारीख को ही फाइनल हुआ था
- सामने थे एचडी देवगौड़ा
- नतीजा आया तो सभी हैरान रह गए, तेजस्विनी ने देवगौड़ा को एक लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया
- इस जीत से डीके बेंगलुरु रूरल एरिया से बड़े नेता के तौर पर उभरे
- नकी साख इतनी मजबूत हो गई कि समर्थक उन्हें “कनकपुरदा बंदे यानी कनकपुरा की चट्टान बुलाने लगे
- 2004 में मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा ने शिवकुमार को शहरी विकास मंत्री बनाया
- यहीं से राजनीति में शिवकुमार का कद और बिजनेस तेजी से बढ़ा
कर्नाटक के सबसे अमीर विधायक, पॉलिटिकल मैनेजमेंट में माहिर
- डीके कई बार कांग्रेस को मुश्किल से निकाल चुके हैं, चाहे महाराष्ट्र हो या गुजरात
- साल 2002 की बात है। महाराष्ट्र में 30 महीने पुरानी डेमोक्रेटिक फ्रंट (DF) की अगुवाई वाली सरकार थी
- मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख थे। अचानक 9 विधायकों ने कह दिया कि वे देशमुख सरकार को समर्थन नहीं देंगे
- CM देशमुख का कहना था कि सरकार के पास कुल 288 विधायकों में से 150 विधायकों का समर्थन है
- इसमें कांग्रेस के 74, NCP के 61 विधायक हैं , 12 में से 9 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी DF के पास है
- विपक्षी पार्टी BJP के पास 56 और शिवसेना के पास 69 विधायक थे
- भाजपा की अगुवाई वाली विपक्षी पार्टी देशमुख सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई
- लेकिन देशमुख सरकार बचाने में कामयाब रहे , इसके पीछे डीके शिवकुमार ही थे
- वे महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक्टिव थे
- देशमुख सरकार संकट में आई, तो एक हफ्ते तक डीके ने DF के विधायकों को बेंगलुरु के अपने रिजॉर्ट में रखा
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इससे देशमुख सरकार बच गई ,विपक्षी दल कांग्रेस गठबंधन को नहीं तोड़ पाई
- इसी तरह 2017 में गुजरात में भी डीके ने मास्टरस्ट्रोक खेला
- सोनिया के बेहद करीबी रहे अहमद पटेल की राज्यसभा सीट दांव पर थी
- कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक के CM सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष जी परमेश्वर को साइडलाइन कर शिवकुमार को जिम्मेदारी दी
- उनसे गुजरात के विधायकों की मेजबानी करने के लिए कहा
- कांग्रेस को डर था कि BJP उसके विधायकों के बीच सेंध लगा सकती है
- डीके ने गुजरात के 44 कांग्रेस विधायकों को बेंगलुरु के रिसॉर्ट में रखा
- इससे अहमद पटेल चुनाव जीत गए, उन्होंने जीत का क्रेडिट डीके को दिया
चुनाव आयोग को दिए हलफनामे के मुताबिक, डीके की कुल संपत्ति 1413 करोड़ है
- 2018 में डीके शिवकुमार पर ED का एक्शन शुरू हो गया
- उन पर मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स चोरी समेत 19 से ज्यादा मामले दर्ज हैं
- कर्नाटक के पॉलिटिकल एक्सपर्ट दावा करते हैं कि BJP ने डीके शिवकुमार को तोड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी
- ऐसा भी कहा गया कि यदि वे BJP जॉइन कर लेते हैं, तो जांच से बच सकते हैं
- पर डीके कांग्रेस में बने रहे , उनके पिता केम्पेगौड़ा भी कांग्रेस में थे और विधायक रहे
- मनी लॉन्ड्रिंग और टैक्स चोरी से जुड़े एक मामले में 3 सितंबर 2019 को ईडी ने लगातार 4 दिन की पूछताछ के बाद डीके को गिरफ्तार कर लिया था
- करीब चार महीने जेल में रहे, कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले जमानत पर बाहर आए
- ईडी ने डीके को गिरफ्तार किया था, उस दिन का भी एक किस्सा है
- कर्नाटक के लोगों ने ऐसे शख्स को रोते देखा, जो कभी सीधे अमित शाह से भिड़ गया था
- उस दिन गणेश चतुर्थी थी
- शिवकुमार अपने पिता की समाधि पर जाना चाहते थे, लेकिन ईडी ने रोक दिया
- इसके बाद टीवी पर डीके आंसुओं को रोकने की कोशिश करते दिखे
- उस वक्त शिवकुमार के एक नजदीकी ने कहा था, ‘यह कोई राजनीतिक नाटक नहीं था
- वोक्कालिगा समुदाय के लोग गणेश चतुर्थी से बहुत गहराई से जुड़े हैं
- डीके के साथ जैसा बर्ताव किया गया, इस क्षेत्र के समुदाय पर इसका प्रभाव पड़ना तय है
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- डीके की बेटी ऐश्वर्या शिवकुमार की शादी 2020 में अमर्त्य हेगड़े से हुई थी
- अमर्त्य कैफे कॉफी डे यानी CCD के फाउंडर रहे वीजी सिद्धार्थ के बेटे और कर्नाटक के कद्दावर नेता एसएम कृष्णा के पोते हैं
- एसएम कृष्णा 40 साल से ज्यादा वक्त तक कांग्रेस में रहे
- केंद्रीय मंत्री के अलावा CM भी बने, लेकिन 2017 में BJP में शामिल हो गए थे
गाँधी परिवार के करीबी रहे डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री बनने की रेस में सबसे आगे हैं