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हर सदी लेकर आई एक राम कथा. 2400 साल में 400 से ज्यादा रामायण, भारत ही नहीं अन्य देशों में भी धूम,मुग़ल शासकों में भी थी दीवानगी

1935 में मिशनरी कामिल बुल्के जब भारत आये तो तुलसीदास की रामचरितमानस पढ़ कर उन पर इसका ऐसा प्रभाव हुआ कि उन्होंने रामकथा पर ही PhD करने का मन बना लिया .PhD करने के बाद दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लिखी गई रामकथा पर प्रो. बुल्के ने  रिसर्च की उन्ही की इसी रिसर्च थीसिस पर ‘रामकथा’ नाम से किताब भी पब्लिश हुई .इसी किताब के अनुसार दुनिया में 400 रामकथाएं हैं .इसी किताब में दुनिया की तमाम रामकथाओं का जिक्र है , यह किताब बताती है कि इस दुनिया में 3000 से ज्यादा ग्रंथ राम की विशेषताओं का वर्णन करते हैं ,रामकथा पर रिसर्च के चलते 1974 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया .17 अगस्त 1982 को प्रो. बुल्के का निधन हो गया .भारतीय साहित्य का  इतिहास 2400 सालों से राम की विशेषताओं को पढ़, सुन और लिख  रहा है बीते  2400 सालों में हर सदी कोई न कोई  रामकथा लेकर आयी है .यहां तक कि भारत में लगभग २०० वर्षों तक राज करने वाले मुग़ल शासकों में भी राम कथा की इतनी दिवानगी थी कि अकबर, जहांगीर और शाहजहां जैसे मुगल शासकों ने वाल्मीकि रामायण का उर्दू  ट्रांसलेट कराया था .प्रो. बुल्के की  रिसर्च थीसिस ‘रामकथा’ में ये कहा गया है कि वाल्मीकि रामायण ही सबसे पहली राम कथा थी लेकिन हिंदुओं के चार वेदों में से एक ऋग्वेद में राम नाम के एक प्रतापी और धर्मात्मा राजा का उल्लेख है ,मगर ये  स्पष्ट नहीं करता कि ये वही राम हैं , एक रिसर्च के मुताबिक रामकथा का सबसे पहला उल्लेख ‘दशरथ जातक कथा’ में मिलता है जो ईसा से 400 वर्ष पूर्व यानि 2400 साल पहले लिखी गई थी इसके बाद ईसा से 300 वर्ष पूर्व का काल वाल्मीकि रामायण का मिलता है  वाल्मीकि के भगवान राम के समकालीन होने कारण ही वाल्मीकि रामायण को सबसे ज्यादा प्रामाणिक माना जाता है ग्रंथ के अनुसार  सीता ने उनके आश्रम में ही लव-कुश को जन्म दिया था और लव-कुश ने ही राम को दरबार में वाल्मीकि की लिखी रामायण सुनाई थी . 

  • 13वीं-14वीं सदी के ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘उदार-राघव’ इन दो ग्रंथों में राम के वनवास वाले प्रसंग में राम और सीता का संवाद है 
  • प्रसंग है कि राम को 14 वर्ष का वनवास हो गया। सीता साथ जाने की जिद पर अड़ी थीं। राम सीता को अयोध्या में ही रोकने के लिए अपने तर्क दे रहे थे 
  • जब सीता को लगा कि राम नहीं मानेंगे और उन्हें अयोध्या में ही छोड़कर अकेले जंगल चले जाएंगे तो सीता ने राम से कहा कि आज तक मैंने जितनी रामकथाएं सुनी हैं, उन सब में सीता राम के ही साथ वनवास पर जाती हैं तो आप मुझे यहां क्यों छोड़कर जा रहे हैं 
  • सीता के इस तर्क के बाद राम मान गए और सीता उनके साथ वनवास पर चल दीं 
  • हनुमान का लंका में जाकर सीता से मिलना, अशोक वाटिका उजाड़ना और लंका को जलाने वाला प्रसंग तो लगभग सभी को पता है, लेकिन कुछ रामकथाओं में इसमें भी बहुत अंतर मिलता है
  • जैसे 14वी शताब्दी में लिखी गई ‘आनंद रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि जब सीता से अशोक वाटिका में मिलने के बाद हनुमान को भूख लगी तो सीता ने अपने हाथ के कंगन उतारकर हनुमान को दिए और कहा कि लंका की दुकानों में ये कंगन बेचकर फल खरीद लो और अपनी भूख मिटा लो। 
  • सीता के पास दो आम रखे थे सीता ने वो भी हनुमान को दे दिए। हनुमान के पूछने पर सीता ने बताया कि ये फल इसी अशोक वाटिका के हैं, तब हनुमान ने सीता से कहा कि वे इसी वाटिका से फल लेकर खाएंगे। 
  • ‘रंगनाथ रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि विभीषण के राज्याभिषेक के लिए हनुमान ने एक बालूरेत की लंका बनाई थी। जिसे हनुमत्लंका (सिकतोद्भव लंका) के नाम से जाना गया। कुछ ग्रंथों में ये भी उल्लेख मिलता है कि अशोक वाटिका में सीता की पहरेदारी करने वाली राक्षसी त्रिजटा विभीषण की ही बेटी थी। 
  • हनुमान ने राम को बताया था कि विभीषण से हमें मित्रता कर लेनी चाहिए, क्योंकि उसकी बेटी त्रिजटा सीता के प्रति मातृवत यानी माता के समान भाव रखती है। 
  • रामकथा सिर्फ संस्कृत या हिंदी ही नहीं, उर्दू और फारसी में भी लिखी गई है। 1584 से 1589 के बीच अकबर ने अल बदायूनी से वाल्मीकि रामायण का उर्दू अनुवाद कराया था। जहांगीर के शासन काल में तुलसीदास के समकालीन गिरिधरदास ने वाल्मीकि रामायण का अनुवाद फारसी में किया था। 
  • इसी काल में मुल्ला मसीही ने ‘रामायण मसीही’ भी लिखी थी। शाहजहां के समय ‘रामायण फैजी’ लिखी गई। 17वीं शताब्दी में ‘तर्जुमा-ए-रामायण’ भी लिखी गई। ये सभी वाल्मीकि रामायण के ही उर्दू ट्रांसलेशन थे। 
  • 16वीं शताब्दी के बाद से भारत में कई ऐसे विदेशी भारत आए जिन्होंने रामकथा पर रिसर्च की और अपने हिसाब से उसे नए सिरे से लिखा।
  • 1609 में जे. फेनिचियो नाम के मिशनरी ने लिब्रो डा सैटा नाम की किताब लिखी। इसमें विष्णु के दशावतार और रामकथा की पूरी डिटेल थी। ये वाल्मीकि रामायण पर आधारित थी।
  • 17वीं शताब्दी में ए. रोजेरियुस नाम के डच पादरी 11 साल भारत में रहे थे। 1651 में उनकी किताब द ओपन दोरे में रामकथा थी। ये भी वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित थी। इसमें राम के अवतार से उनके रावण वध के बाद अयोध्या लौटने तक की कहानी थी।
  • 1658 में श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ इलाकों में छह साल तक रहे पी. बलडेयुस ने डच भाषा में लिखी किताब आफगोडेरैय डर ओस्ट इण्डिशे हाइडेनन में राम जन्म से लेकर उनके स्वर्गारोहण तक की कहानी है। इसमें सीता की अग्निपरीक्षा का भी जिक्र है।
  • 18वीं शताब्दी में एम. सोनेरा नाम के एक फ्रेंच यात्री ने बोयाज ओस इण्ड ओरियंटल नाम की किताब लिखी थी, जिसमें एक छोटी राम कथा है। इस कथा के मुताबिक राम 15 साल की उम्र में अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास पर गए थे।
  • ऐसे ही 16वीं से 19वीं शताब्दी के बीच करीब 15 अलग-अलग यात्रियों ने भारत घूमने के बाद अपनी किताबों में राम कथा का जिक्र किया है। इनमें से ज्यादातर वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी, पुर्तगाली और डच भाषा की किताबों में राम का जिक्र मिलता है। 

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